जम्मू/जेएनएस। 2022 में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। सभी सियासी पार्टियां चुनावी रणनीति बनाने में लगी है वहीं कांग्रेस के बागी नेताओं ने ही पार्टी आलाकमान की मुश्किलें बढ़ाने का काम किया है। पंजाब में चुनाव से ठीक पहले सिद्धू संग विवाद के बाद पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस छोड़ नई पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया। वहीं कांग्रेस आलाकमान के फैसलों के खिलाफ मुखरता दिखाने वाले नेताओं को तो जी-23 समूह की संज्ञा भी मीडिया में दी जा चुकी है। लेकिन इन सब के बीच दिग्गज कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद की जम्मू कश्मीर में सक्रियता ने पार्टी की बेचैनी को बढ़ा दिया है। आजाद जम्मू कश्मीर में ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं। उनके विश्वासपात्र जगह-जगह घूम रहे हैं और तो और सार्वजनित मंचों पर आजाद पीएम मोदी और गृह मंत्री शाह की खुलकर आलोचना तो करते नहीं नजर आ रहे लेकिन अपनी पार्टी के रवैये को जरूर कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। जिसके बाद से ही गुलाम नबी आजाद के जम्मू कश्मीर प्लान के बारे में चर्चा इन दिनों खूब हो रही है।
गांधी परिवार के पुराने वफादार आजाद ने अब जम्मू-कश्मीर में रैलियों की एक श्रृंखला और उसमें उमड़ती भीड़ ने कांग्रेस के कान खड़े कर दिए हैं। आजाद ने 16 नवंबर को कश्मीर की सीमा से लगे जम्मू प्रांत के बनिहाल में अपनी पहली रैली की थी। उन्होंने तीन चरणों में लगभग एक दर्जन बैठकों को संबोधित किया। जोकि 4 दिसंबर को रामबन में समाप्त हुई।
डोडा के भद्रवाह के मूल निवासी, आजाद जम्मू प्रांत से संबंधित तत्कालीन राज्य के एकमात्र मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज रहने वाले नेता हैं। आजाद पूरे केंद्र शासित प्रदेश में कांग्रेस के सबसे बड़े नेताओं में से हैं। कई कांग्रेस नेताओं के उनकी बैठकों में शामिल हो रहे हैं। इसके साथ ही उनके 20 वफादारों ने हाल ही में पार्टी के पदों को छोड़कर केंद्र शासित प्रदेश में नेतृत्व में बदलाव की मांग भी की। जिसके बाद से ही आजाद की भविष्य की योजनाओं के बारे में अटकलें लगाई जा रही हैं।
गौरतलब है कि आजाद ने बीजेपी की आलोचना के बावजूद सार्वजनिक मंचों पर सीधे तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह या उपराज्यपाल मनोज सिन्हा पर हमला नहीं किया। एक रैली में आजाद ने कहा कि सिन्हा अच्छे प्रशासक हैं, लेकिन निर्वाचित प्रतिनिधि ज्यादा अच्छा काम करेंगे। रविवार को पत्रकारों से बात करते हुए आजाद ने कहा था कि मौजूदा कांग्रेस नेतृत्व इंदिरा या राजीव गांधी के विपरीत किसी भी आलोचना को बर्दाश्त नहीं करता है। जबकि आजाद ने दावा किया है कि वह एक आजीवन कांग्रेसी हैं, और रहेंगे। लेकिन आजाद के वफादारों ने एक नया राजनीतिक मोर्चा बनाने की संभावना से इंकार नहीं किया है।
हाल ही में कांग्रेस के पदों को छोड़ने वाले 20 में से एक नेता व पूर्व राज्य इकाई के उपाध्यक्ष गुलाम नबी मोंगा ने कहा कि हमें पार्टी के नेतृत्व के साथ समस्या है। हम इन्हें चार साल से उठा रहे हैं और आलाकमान ने कोई कार्रवाई नहीं की। एक नए राजनीतिक मोर्चे की बात को ‘मीडिया निर्माणष् कहते हुए गुलाम नबी मोंगा ने कहा कि आजाद साहब कई बार कह चुके हैं कि राजनीति में कुछ भी संभव है। लेकिन आज हम कांग्रेस के साथ हैं।’ पार्टी के एक अन्य नेता ने कहा कि कांग्रेस आलाकमान ने अभी तक उनके इस्तीफे के फैसले पर प्रतिक्रिया नहीं दी है। उन्होंने कहा, अगर यह इसी तरह चलता रहा, तो आप एक नए राजनीतिक दल के उदय को देख सकते हैं।