पंजाब। शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल की ओर से सत्ता में आने पर दलित नेता को उपमुख्यमंत्री का पद देकर आदर करने की बात हो रही है,पंरतु दूसरी तरफ अपनी पार्टी के दलित नेताओं को भूलता जा रहा है, जिसमें टकसाली अकाली परिवार चरणजीत सिंह अटवाल, उनका सुपुत्र इंद्र इकबाल सिंह अटवाल और पार्टी के ही नेता पूर्व मंत्री ईशर सिंह मेहरबान के नाम आजकल लोगों की जुबान पर हैं। शिरोमणि अकाली दल में पहले ही टकसाली अकाली परिवार जोकि पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के नजदीकी थे, जिसमें सुखदेव सिंह ढींडसा ने पार्टी प्रधान की नीतियों से तंग आकर नई पार्टी बनाने के लिए और इसके अलावा स्व. रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा और स्व. सेवा सिंह सेखवां पहले ही पार्टी छोड़ चुके थे।
शिरोमणि अकाली दल में इन दिनों सबसे पुराने टकसाली अकाली और दलित भाईचारों का बड़ा चेहरा चरणजीत सिंह अटवाल हैं, परंतु उन्हें भी इस बार विधानसभा मतदान से पहले अकाली हाईकमान की तरफ से बिल्कुल अनदेखा कर दिया गया। इसके अंतर्गत न ही अटवाल और न ही उनके सुपुत्र इंद्र इकबाल सिंह अटवाल को किसी भी हलके से टिकट दी। बेशक शिरोमणि अकाली दल की तरफ से बसपा के साथ गठजोड़ कर दलित वोट को अपने तरफ खींचने की कोशिश की है, परंतु अपनी ही पार्टी के सीनियर नेता चरणजीत सिंह अटवाल को अनदेखा करने के बाद संबंधित भाईचारे और उनके समर्थकों में भारी निराशा देखने को मिल रही है।
अटवाल परिवार को अकाली हाईकमान की तरफ से अनदेखा करने के बाद चर्चाएं जोरों पर थी कि यह टकसाली दलित नेता जिसने कि पुराने समय में मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और अकाली दल का डट कर साथ दिया। अब के हालात को देखकर किसी अन्य पार्टी में जा सकते हैं, लेकिन अभी तक परिवार की तरफ से अन्य पार्टी में शामिल होने संबंधित खुलकर नहीं कहा जा रहा। अटवाल के अलावा कुछ वर्ष पहले कांग्रेस पार्टी छोड़ कर आए पूर्व मंत्री ईशर सिंह मेहरबान भी जिन्हें हलका पायल का इंचार्ज लगाया हुआ था, जिन्होंने यह सीट बसपा के खाते जाने के बाद हलके की नुमाइंदगी के तौर पर संभाली सेवा से इस्तीफा दे दिया।
ईशर सिंह मेहरबान भी हलका कूंमकलां, जगराओं और पायल से चुनाव लड़ चुके हैं और दलित भाईचारों में उनकी अच्छी पहचान है परन्तु यह भी पार्टी की तरफ से नजरअंदाज करने के कारण इनको किसी हलके से भी टिकट नहीं दी गई। शिरोमणि अकाली दल की तरफ से अपनी ही पार्टी के बड़े दलित चेहरों को यदि न संभाला गया तो उनको आने वाली विधानसभा मतदान में इसका खमियाजा भुगतना पड़ सकता है।