नैनीताल। देखा जाय तो आज पूर्व या वर्तमान विधायक को सिर्फ अपनी कुर्सी से मतलब है, जनता के दुःख दर्द से उनका कोई लेना-देना नहीं है। जनता को तो अपने कुर्सी के लालच को छिपाने के लिए आगे किया जाता है। यदि इन दल-बदलु नेताओं ने जनता के लिए इतना काम किया है तो फिर निर्दलीय चुनाव क्यों नहीं लड़ लेते। दल-बदल से जहां इन नेताओं के भरोसे पर विश्वास करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो गया है। इन दल-बदलु नेताओं ने तो बेचारा गिरगिट भी शरमा गया होगा।
उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव 2022 के लिए दो दिग्गज पार्टियां सत्ता के लिए जी-जान लगा रहे हैं तो वहीं विधायकी का टिकट कट जाने से नाराज उम्मीदवार दूसरे दल में टिकट पक्का करने के बाद ज्वांइन हो रहे हैं। यहां पर बात की जाय नैनीताल विधानसभा सीट की, तो चेहरे वही हैं लेकिन अब ‘हाथ’ वाले ‘कमल’ में तो ‘कमल’ वाले ‘हाथ’ में।
2017 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी थी सरिता आर्य और उनके सामने थे भाजपा उम्मीदवार संजीव आर्य। तब मोदी लहर में संजीव आर्य ने सरिता को सात हजार से अधिक मतों से पराजित किया था। इस बार चुनावी समीकरण बदल चुके हैं।
संजीव आर्य जहां पिता यशपाल आर्य के साथ पार्टी छोड़कर कांग्रेस में घर वापसी कर चुके हैं वहीं सरिता आर्य कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुकी हैं। जिसके बाद से ही संभावना जताई जा रही है कि दोनों ने टिकट के शर्तों पर ही दलों को ज्वाइन किया है। ऐसे में इस बार भी सीट वही हो सकती है, चेहरे वही हो सकते हैं, लेकिन दल बदल जाएंगे।
बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस में काफी उथल-पुथल मची थी। 2016 में जहां हरक सिंह रावत कई विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे वहीं एक साल बाद 2017 में चुनाव से ठीक पहले कैबिनेट मंत्री रहे यशपाल आर्य ने बेटे संजीव आर्य के साथ भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। जिसके बाद भाजपा ने संजीव आर्य को नैनीताल से मैदान में उतार दिया।
यशपाल अपनी बाजपुर सीट से ही भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरे। तब कांग्रेस ने अपनी निवर्तमान विधायक सरिता आर्य को ही संजीव के खिलाफ मैदान में उतारा। मोदी लहर में पिता-पुत्र दोनों की नैया पार लगी। संजीव आर्य ने सात हजार से अधिक मतों से सरिता आर्य को हराया। वहीं कुछ महीने पहले जब यशपाल और संजीव ने कांग्रेस में वापसी की तो सरिता ने बगावती रुख दिखाते हुए साफ कर दिया था कि नैनीताल सीट से कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया तो वह भाजपा ज्वाइन करने में चूकेंगी नहीं।
नैनीताल में कांग्रेसी नेता हेम आर्या भी भाजपा का दामन थाम चुके हैं। हेम आर्या 2017 में भाजपा से टिकट न मिलने पर नैनीताल से निर्दलीय चुनाव लड़े, तब इन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। फिर 2018 में उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया था। हेम ने 2012 में भाजपा की ओर से नैनीताल सीट पर चुनाव लड़ा था। तब वह 5000 वोटों से सरिता आर्य से पराजित हुए थे। अब हेम और सरिता आर्य भाजपा में ही हैं। ऐसे पार्टी से टिकट के लिए दोनों हर स्तर पर जोर लगाएंगे, लेकिन एक को समझौता करना ही पड़ेगा। वहीं सरिता ने टिकट के लिए ही कांग्रेस छोड़ी है तो उनका दावा अधिक मजबूत माना जा रहा है।
देखने वाली बात यह होगी कि जनता अब किसे चुने, क्योंकि चुनाव आते ही ईमानदार, कर्मठ, जुझारू, और न जाने कौन-कौन से टैग लेकर जनता के बीच में जाएंगे, ये तो आने वाले समय में पता चल जायेगा। जनता उसी को वोट देगी जो जनता का विधायक होगा, न कि चंद लोगों का विधायक।