पश्चिम बंगाल (जेएनएस)। बंगाल के बैरकपुर से बीजेपी सांसद अर्जुन सिंह ने टीएमसी का दामन थाम लिया है। तीन साल बाद अर्जुन सिंह ने घर वापसी की है, जिन्हें टीएमसी महासचिव अभिषेक बनर्जी ने पार्टी की सदस्यता दिलाई। पिछले 11 महीनों में बीजेपी छोड़कर टीएमसी में आने वाले अर्जुन सिंह पांचवे बड़े नेता हैं। वहीं, बीजेपी के विधायकों की संख्या भी बंगाल में एक साल के अंदर 77 से घटकर 70 पर पहुंच गई है।
बंगाल की मुख्यमंत्री के रूप में लगातार तीसरी बार सत्ता पर काबिज हुईं ममता बनर्जी की नजर दिल्ली के सिंहासन पर है। ममता अपने सियासी दुर्ग को दुरुस्त करने में जुटी हैं, ताकि 2024 के चुनाव में मजबूती के साथ अपनी दावेदारी पेश कर सकें। इस मिशन के तहत इन दिनों सियासी जनाधार रखने वाले उन सभी विपक्षी नेताओं की एक के एक बाद एक टीएमसी में एंट्री कराई जा रही है।
बता दें कि 2024 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश की सत्ता से बेदखल करने की लड़ाई काफी कठिन और चुनौतीपूर्ण है। इस बात को ममता भी बेहतर और बखूबी तौर पर जानती है। इसकारण ममता अपनी दावेदारी पेश करने से पहले अपने सियासी किले को मजबूत करने में जुटी हैं, जिसकी शुरूआत उन्होंने 2021 के विधानसभा चुनाव जीतने के साथ ही कर दी थी।
बंगाल के कद्दावर नेता मुकुल रॉय ने सबसे पहले जून 2021 में बीजेपी को अलविदा कहा। इसके बाद राजीव बनर्जी, बाबुल सुप्रियो, विश्वजीत दास जैसे नेताओं ने भी बीजेपी छोड़कर टीएमसी का दाम थाम लिया। राजीव बनर्जी त्रिपुरा में पार्टी के प्रभारी हैं, जबकि बाबुल सुप्रियो सांसदी छोड़ उपचुनाव में विधायक बन गए हैं। इस फेहरिश्त में अब बड़ा नाम अर्जुन सिंह का भी जुड़ गया है, जो बैरकपुर से सांसद हैं और भाटपारा सीट से 4 बार विधायक रह चुके हैं।
अर्जन सिंह बैरकरपुर इलाके से आते हैं। 2019 में टीएमसी से टिकट न मिलने पर बीजेपी का दामन थाम लिया था। अर्जुन सिंह दिनेश त्रिवेदी को बैरकपुर सीट से हराकर सांसद बने थे, लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव के दौरान ही त्रिवेदी ममता का साथ छोड़कर बीजेपी में चले गए थे। इसके बाद बैरकपुर के इलाके में टीएमसी के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं बचा था, जिसके सहारे ममता टीएमसी को मजबूत कर सकें। इसके बाद अर्जुन सिंह की घर वापसी ने टीएमसी को बैरकपुर इलाके में मजबूत होने का मौका दे दिया है।
मुकुल, राजीव बनर्जी, बाबुल सुप्रियो, विश्वजीत दास और अर्जुन सिंह ने बीजेपी छोड़कर टीएमसी में एंट्री की है। ये पांचों नेता पश्चिम बंगाल की सियासत में अपना राजनीतिक आधार रखते हैं और अपने ही दम पर जीतने की ताकत रखते है। इन पांचों नेताओं की अपने-अपने इलाके में मजबूत पकड़ है, जिसके चलते ही ममता बनर्जी ने सारे गिले-शिकवे भुलाकर अपने साथ लेने में कोई देरी नहीं दिखाई।
मुकुल रॉय उन चंद नेताओं में शामिल हैं, जिन्होंने 1998 में ममता बनर्जी के साथ कांग्रेस का साथ छोड़ा था। ममता बनर्जी के संघर्ष को आगे बढ़ाने में मुकुल रॉय की अहम भूमिका रही है, जिनके चलते ममता बनर्जी अपना मिशन आगे बढ़ा पाईं और कुछ ही सालों में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बन गईं। मुकुल रॉय के भाजपा ज्वाइन करने की बड़ी गलती को भी भूलते हुए ममता ने उन्हें वापस लेकर पुराना रुतबा फिर से दे दिया है।