राजीव नामदेव –
भंडारा हो और रायता न फैले ऐसा न पहले कभी हुआ न अब होता है। इस बार भी भंडारे में यही हुआ। चुनिंदा जीमने वालों को ध्यान में रखकर बनाई गई गुपचुप भंडारे की पूड़ियां ख़बर फैली तो कम पड़ गई। माहौल कुछ ऐसा बना की भंडारे वाले भी सिर पकड़े नज़र आए।
मौका दीपावली का है और दस्तूर भी चला आ रहा है। लिहाज़ा देहात के एक साहब ने भंडारा करना तय किया। साहब के हुकुम पर पसंदीदा जीमने वालों की लिस्ट अपडेट की गई। लिस्ट में हाथ मिलाने वाले और चक्कर लगाने वाले शामिल किए गए थे। शामिल वह थे जो बात बेबात जयकारा लगाते हों, ख़िलाफ़त का तो ख़्याल भी मन में न लाते हों, बस साहब की हां में हां मिलाते हों। साहब के आदेश पर जीमने वालों को सूचित किया गया। इच्छा थी कि भंडारा गुपचुप निबट जाए और रायता न फैले। आदेशानुसार जीमने वाले भी दरबार पहुंच गए।
पर भंडारे में रायता फैलने की जो परंपरा थी वह क़ायम रही। भंडारे की ख़बर आम हुई तो जो बुलाए न गए थे वह भी पहुंच गए। जिनको ढंग से जीमना न आए वह भी खूब शोर मचाएं खुद को जीमण वाला बताएं। इधर साहब का आदेश की लिस्ट वालों को ही जिमाना है। उधर लिस्ट के बाहर वालें जबरन जीमने को आमादा फिर क्या रायता बिखरा और बिखरता चला गया। जैसे तैसे भंडारा निबटाया गया। अब लिस्ट में शामिल जीमण वाले मुस्कुराए और लिस्ट के बाहर वाले मन मे टीस लिए शोर मचाएं कि हम भी जीमण वाले फिर ये कुछेक को ही क्यों भंडारे की खीर पूड़ी मिले। उधर साहब जीमण वालों की तादाद देख चकराएं की किस घड़ी और क्यों वो भंडारा बुलाए, रायता ऐसा फैला की समेटा न जाए। खबर यह भी है कि जैसे तैसे अब खीर पूड़ी की जगह खाली पूड़ी देकर नाराज़ जीमण वालों को साधने की तैयारी है।