राजीव नामदेव –
तो क्या प्रदेश में निकाय चुनाव एक बार फिर आगे खिसक सकते हैं ? हाल ही में ओबीसी आरक्षण को लेकर उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान यह सवाल एक बार फिर फिज़ा में तैरने लगा है।
नगर निकायों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद फ़िलहाल प्रशासनिक अधिकारी निकायों का पदभार संभाल रहे हैं। निकाय चुनाव को लेकर उच्च न्यायालय में दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से इस वर्ष के अंत तक चुनाव की बात कही गई है। लेकिन हाल ही में ओबीसी आरक्षण को लेकर उच्च न्यायालय में दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान चुनाव की समयसीमा को लेकर फिर सवाल उठने लगे हैं।
दरअसल, सरकार ओबीसी आरक्षण पर प्रवर समिति की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए फिलहाल 2011 की जनगणना के आधार पर चुनाव कराने की बात कह रही है। लेकिन इसी बीच ओबीसी आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका पर कोर्ट ने राज्य सरकार को 6 नवंबर तक स्थिति से अवगत कराने के निर्देश दिए हैं। मामले की सुनवाई कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी एवं न्यायमूर्ति विवेक भारती शर्मा की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि राज्य सरकार 2011 की जनगणना के अनुसार निकायों में आरक्षण निर्धारित कर रही है। 2018 के निकाय चुनाव इसी आधार पर हुए थे लेकिन वर्तमान मे पहाड़ के बजाय प्रदेश के मैदानी इलाकों में ओबीसी का वोट बैंक बढ़ा है।इसलिए ओबीसी समिति की रिपोर्ट के आधार पर आरक्षण दिया जाए। राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि आरक्षण को लेकर राज्य सरकार ने अधिसूचना जारी कर दी है। इसमें इनसे आपत्ति मांगी गई है। आपत्तियों का निस्तारण 27 अक्तूबर तक हो जाएगा। ऐसे में निकाय चुनाव आगे खिसकने को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। यदि ऐसा हुआ तो चुनाव की तैयारियों में जुटे दावेदारों को बड़ा झटका लगेगा।